घुंघट हटाओ
घुंघट हटाओ
आज के इस तकनीकी और विज्ञान के दौर में घुंघट प्रथा हकीकत में मानव समाज के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। एक ओर हम महिला सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की पैरवी में लगे हुए हैं वहीं महिलाओं को घुंघट प्रथा जैसी कुरुतियों से उबार नहीं पा रहे हैं क्योंकि आज भी नारी के प्रति हमारे सभ्य समाज की मनोस्थिति अच्छी नहीं है आज भी हम देख रहे हैं कि पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण देकर उनकी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया गया है लेकिन आज भी ये प्रतिनिधि घुंघट की ओट में ही काम काज संभालती है और सभाओं में भी घुंघट में ही नजर आती हैं।
पुरातन काल में महिलाओं की स्थिति अच्छी थी उस समय मैत्रैयी गार्गी जैसी विदुषी महिलाओं ने समाज को अपना अमूल्य योगदान दिया उसी योगदान के स्वरूप आज उनके नाम से महिला शक्ति को पुरुस्कार मिलना हकीकत में उनका सराहनीय योगदान है लेकिन मध्यकाल में विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण से महिलाओं के अधिकारों का हनन शुरू हो गया लेकिन वर्तमान में कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल जैसी अन्य महिलाओं ने अपनी योग्यता का लोहा मनवाया जिन्होंने समाज को बहुत कुछ दिया अगर ये सब घुंघट के परदे में बंध कर रह जाती तो क्या आज ये इस मुकाम को हासिल कर पाती? तो उत्तर होगा बिल्कुल ही नहीं।
आज महिलाओं के सपनों को ऊंची उड़ान देने हेतु महिलाओं को परदे से बाहर लाना ही होगा चाहे वो बुरका हो या घुंघट। राज्य सरकार भी इस कुप्रथा के निवारण हेतु प्रयासरत है। सच में आज के इस दौर में घुंघट प्रथा मानव समाज के लिए कलंक से कम नहीं है हमें इस कुप्रथा को दूर करने के लिए ग्राम स्तर पर भी बहुत कुछ करना होगा ताकि महिलाएं भी परदे से बाहर आकर अपने सपनों को साकार रूप दे सकें।